K2-18B Planet वैज्ञानिकों ने खोजा नई धरती, कहां और कैसी है, कब खोजा, क्या क्या है?

k2-18b प्लेनेट कहां पर है- k2-18b Planet kaha par hai

k2-18b Planet New Earth in hindi वैज्ञानिकों को दूसरे तारामंडल में एक पृथ्वी जैसा ग्रह मिला है। जहां पर पानी से बाप के बादल बन रहे हैं और वहां बरस भी रहे हैं। नासा के साइंटिस्टों ने कई प्रकाश वर्ष दूर एक बड़ा एक्सपो प्लेनेट के होने का ऐलान किया है। यह खोज नासा के जेम्स वेब टेलिस्कोप की तरफ से की गई है। नासा की माने तो जो एक्सोप्लैनेट मिला है। वह पृथ्वी से 8.6 गुना बड़ा है। साथ ही एजेंसी को k2-18b प्लेनेट (ग्रह) के वातावरण की नई जांच में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड समेत कार्बन के प्रभाव वाले अणुओं की उपस्थिति कभी पता चला है यानी यह सब चीज भी वहां मौजूद हैं।

k2-18b प्लेनेट क्या है- k2-18b Planet kya hai

k2-18b प्लेनेट, पृथ्वी से 120 प्रकाश वर्ष दूर है। k2-18b प्लेनेट जैसे एक्सोप्लैनेट जिनका आकार पृथ्वी और नेपच्यून के बीच है। सौरमंडल की किसी भी चीज से काफी अलग है। नासा की माने तो निकटवर्ती ग्रहों की कमी की वजह से इन उप नेप्चून को अक्सर काम करके आता जाता है, इसके अलावा उनके वायुमंडल की प्रकृति खगोलविदों के बीच सक्रिय बहस का एक विषय है।

k2-18b प्लेनेट की खोज कैसे हुई- k2-18b Planet ki khoj kaise hui

किसी इंसान और जानवर को किसी दूसरी ग्रह पर जीवित रहने के लिए क्या चाहिए जाहिर सी बात है, पानी, हवा, एटमॉस्फेयर और एक ऐसा तापमान जहां पर हम जिंदा रह सकें भले ही उसे ग्रह पर ऑक्सीजन हो या ना हो। लेकिन जिस ग्रह पर पानी न हो वहां पर जीवन की उम्मीद करना बेकार है। मंगल ग्रह यानि मार्श प्लेनेट पर ऑक्सीजन काफी कम है लेकिन हम उसका जुगाड़ बना लेंगे। लेकिन पानी के बिना वहां पर भेजे जाने वाले मिशन सब बेकार हो जाएंगे। इसलिए वैज्ञानिक दिन-रात मंगल ग्रह पर रोवर के जरिए पानी के कण खोजते रहते हैं। जिससे मार्श पर के अंदर कोई तरल पानी का स्रोत मिल जाए और हम वहां पर आराम से मानव बस्तियां बसा सके, जीवन की खोज की इसी कड़ी में वैज्ञानिकों को दूसरे तारामंडल में एक ग्रह मिला है। तो चलिए जान लेते हैं।

k2-18b प्लेनेट की खोज किसने किया-  k2-18b Planet ki khoj kisne kiya

काफी दूर अंतरिक्ष में मौजूद तारामंडल में साइंटिस्ट की दो टीम बहुत दिन से एक ग्रह के ऊपर रिसर्च कर रही थी और वह भी हबल स्पेस टेलीस्कोप के जरिए। उन्हें वहां से बहुत ही चौंकाने वाले आंकड़े मिले। उन्होंने रिसर्च में पाया कि उसे ग्रह पर तो भाप के बादल बन रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि दोनों टीम अलग-अलग काम कर रही थी और उन्हें एक दूसरे के बारे में कुछ भी पता नहीं था, जब दोनों टीम ने उसे डाटा को अपनी वेबसाइट पर पब्लिश किया तो सब चौंक गए, क्योंकि दोनों ही टीम एक ही निर्णय पर पहुंची थी इससे यह साबित हो गया कि दोनों टीम ने डाटा को 100 प्रतिशत सही बताया है। उन्होंने बताया कि k2-18b प्लेनेट (ग्रह) में पानी विशाल मात्रा में है।

k2-18b प्लेनेट की खोज कब हुई- k2-18b Planet ki khoj kab hui

k2-18b प्लेनेट नाम की ग्रह की 10 सितंबर को प्रोफेसर बेनेकी की इंटरनेशनल टीम ने अपनी साइट पर इस ग्रह से संबंधित सारी जानकारी को अपलोड किया है। किसी भी डाटा को पब्लिक में बताने से पहले उसे वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है उसके बाद उसे डाटा को एक्सपर्ट एनालाइज करते हैं और फिर सही होने के बाद ही उसे पब्लिकली रिलीज किया जाता है।

उसके बाद 11 सितंबर को यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की दूसरी टीम ने अपने डेटा को जनरल नेचर एस्ट्रोनॉमी में पब्लिश किया दोनों ही टीम ने कहा कि उसे ग्रह में बदल भाप बनकर बरस रहे हैं 2015 में नासा कि केपलर स्पीच टेलीस्कोप ने पृथ्वी से 120 प्रकाश वर्ष दूर एक ग्रह को खोजा था जो कि पृथ्वी से 2 गुना बड़ा था और 8 गुना भारी था। यह ग्रह अपनी तारे के हैबिटेबल जोन में चक्कर लगा रहा था जिसे K-218B नाम दिया गया। यह ग्रह अपने तारे k2-18 का चक्कर लगा रहा है जो कि रेड ड्वॉर्फ स्टार है।

k2-18b Planet kaha par hai
k2-18b Planet kaha par hai

k2-18b प्लेनेट कैसा है- k2-18b Planet kaisa hai

रिसर्च में पता चला कि वहां की जमीन पथरीली है और वहां पानी के बड़े और गहरे जल स्रोत हैं इस ग्रह का वजन पृथ्वी से 8 गुना ज्यादा है इसलिए उम्मीद है कि इस ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी पृथ्वी की तुलना में ज्यादा है साथ ही इस ग्रह पर तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच है। रिसर्च में कहा गया कि इस ग्रह पर न सिर्फ जीवन संभव है बल्कि इस पर कुछ जीवित जीव भी मौजूद हैं।

k2-18b प्लेनेट के बारे में- k2-18b Planet ke bare me

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एस्टॉनोमर एंजेलिस कर्स बताते हैं कि यह पहला ऐसा ग्रह है जहां पर जीवन के लिए उचित तापमान है और पानी तो पहले से ही उपलब्ध है। इस ग्रह पर जीवन जीने के लिए सबसे बेहतर विकल्प मौजूद है और जहां आज से ही घर बनाकर रहा जा सकता है। यह ग्रह 33 दिन में अपने तारे का एक चक्कर पूरा करता है। इसकी खोज के बाद प्रोफेसर बेनेकी ने नासा से रिक्वेस्ट की कि वह इस प्लेनेट को हबल स्पेस टेलीस्कोप से ऑब्जर्व करे।

बेनेकी की टीम को उसे एक्सोप्लैनेट पर पानी कब का मिल चुका था लेकिन वह यह जानना चाहते थे कि उसे ग्रह में वह पानी भाप बनकर बदल बनता है या नहीं 2 साल 3 महीने तक डाटा को एनालाइज करने के बाद यह कंफर्म हुआ कि वहां बादल भी बना रहे हैं और बरस भी रहे हैं उसी समय लंदन की एक टीम भी इस प्लेनेट पर रिसर्च कर रही थी पर प्रोफेसर बेनेकी की टीम ने लंदन की टीम से ज्यादा डाटा कलेक्ट किया था, यही नहीं प्रोफेसर वैनिटी ने कहा कि जो डाटा उन्होंने कलेक्ट किया है वह फ्री टू यूज है और कोई भी उसे इस्तेमाल कर, उसे एक्सोप्लैनेट के बारे में जान सकता है। लेकिन उसे डाटा को सिर्फ वही लोग इस्तेमाल करें, जिन्हें इस डाटा को एनालाइज करना आता हो।

साइंस हो या स्पोर्ट्स हर जगह रेस होती है और अब रेस हो रही है कुछ डाटा को पहले एनालाइज कर पब्लिकली पब्लिश कौन करता है खैर कोई भी पब्लिश करें लेकिन हमें इससे बात पर खुश होना चाहिए कि हमने एक और ऐसा ग्रह खोज निकाला है, जहां पर जीवन संभव हो सकता है।

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